आगरा के किले का शिलान्यास हुआ था करौली के जादों राजा चंद्रसेन के पौत्र गोपालदास जी के हाथों –यमुना जी ने भी किया था यदुवंश का सम्मान
भाइयो यसदुकुल शिरोमणि योगीश्वर भगवाननश्री कृष्ण जी को नमन करते हुए मैं उनके वंशजों (करौली राज वंश ) के इतिहास में एक रोचक घटना का जिक्र कर रहा हूँ जिसके विषय में शायद बहुत कम लोग जानते होंगे।ये घटना उस समय की है जब सम्राट अकबर अपनी राजधानी दिल्ली से आगरा लाने के विचार से आगरा मेंएक किला बनवाना चाहता था।उसने आगरा में किला बनाने का प्रयत्न भी किया लेकिन जैसे ही यमुना जी के किनारे किले की नींव रखते दूसरे दिन देखने पर सारा निर्माण साफ़ मिलता रात को ही यमुना जी के प्रवाह में बह जाता ,काफी कोशिश करने के बाद भी अकबर आगरा में किले की नींव नहीं रखवा सका । सम्राट बहुत परेशान हो गया था। उसने यमुना जी के धार्मिक महत्व को जानकार विद्वान पंडितों व् ज्योतिषियों से विचार विमर्स किया तो सभी ने सम्राट अकबर को सलाह दी कि सम्राट यदि किले की नींव जादों वंशी किसी राजा से कराया जाय तो शायद यमुना महारानी अपनी कुल परम्परा के अनुसार जगह छोड़ सकती है , क्यों कि यमुना जी (कालिंद्री जी ) जदुवंश में पैदा हुए वसुदेव जी और देवकी जी के पुत्र भगवान् श्री कृष्ण जो खुद विष्णु के अवतार थे उनकी चतुर्थ पटरानी थी । यमुना जी अपने कुल की महत्ता को बनाये रखने के कारण उसे नष्ट नहीं कर सकेगी। विचार विमर्श के दौरान डाँग ( करौली ) के राजा का ध्यान आया ,सोचा वह राजा रूप में करामाती महात्मा भी है क्यों न इनसे ही श्री गणेश कराया। जाए परीक्षण भी हो जायेगा और कार्य भी पूर्ण हो जाएगा । ऐसा सोच कर ज्योतिषियों की सलाह मानते हुए सम्राट अकबर लाजमे के साथ जब डाँग के राजा चंद्रसेन के पास पहुंचे तो देवगिरी करौली के इन जादों राजा को देख कर पूरा लवाजमा हैरान हो गया।उन्होंने देखा राजा की आँखे तो बिलकुल नहीं दिखाई दे रही है।राजा उस समय ध्यान में मग्न थे। ईष्वर चिंतन छूटने के बाद जब इन्हें बताया गया क़ि सम्राट अकबर आये हुए है , तो दोनो हाथों से पलकों के बालों को हटाते हुए देखा , सत्कार कर आसन दीया।उन्हें देख कर अकबर का सिर श्रद्धा से झुक गया।विनय करते हुए कहा क़ि यदि आप मेरे ऊपर आशीर्वाद व् कृपा कर सकें तो साथ चल आगरा में किले की नीव अपने हाथों से रख दें। आप धर्मात्मा ईश्वर वादी है।आपके द्वारा लगाईं गई नींव को शायद यमुनाजी अपने कुल की मर्यादा को निभाते हुए किले की नींव को नही बहायेंगी । इस पर राजा चंद्रसेन जी ने कहा क़ि मैं तो चलने फिरने मेँ असमर्थ हूँ, परंतु मेरा नाती गोपालदास जो मेरे ही सामान तपस्वी और यदुकुल शिरोमणी श्री कृष्ण जी का परम् भक्त है , को आप ले जाओ ये मेरे ही प्रताप से किले की नींव लगा देगा।यमुनाजी यदुकुल की मर्यादा एवं अपने वंशजों की महत्ता को समझते हुए स्वतः स्थान छोड़ कर अलग प्रवाह करने लगेंगी ।सम्राट अकबर ने महाराज चन्द्रसेन जी के कहे अनुसार राजा गोपालदास जी को सम्मान सहित साथ लगाया और आगरा में यमुना जी के किनारे राजा गोपालदास जी ने जैसे ही नींव रखी दूसरे दिन प्रातः देखने पर सब आश्चर्यचकित रह गए कि महारानी यमुना जी ने निर्माण कार्य छोड़ दिया और अपने जल प्रवाह से निर्माण को न बहा कर अन्यत्र स्थान प्रवाह करने लगीं।इस प्रकार इस आगरा के किले की नींव सन्1565 ई0 में रखी , जो आजतक अडिग खड़ा रह कर भगवान् श्री कृष्ण के वंशजों करौली के जादों क्षत्रिय राजा चंद्रसेन जी की तपश्या को दाद दे रहा है।यमुना जी ने भी भगवान् श्री कृष्ण के वंशजों का सम्मान करते हुए अपना प्रवाह का रास्ता बदल लिया।और ज्योतिषियों के द्वारा कहा गया कथन क़ि भगवान् श्रकृष्ण के वंशज के हाथों से यदि नींव पड़ेगी तो यमुना जी का प्रवाह उस किले को कोई हानि नहीं कर सकेगा आज तक सत्य है। इस दुर्ग की महारानी यमुना जी की तरफ वाली पिछली दीवार पर एक शिलालेख पर “याकी नींव करौली राजा ने डाली “अंकित देखा जा सकता है।साम्राट भी गोपालदास को भौमिया पुकारता था क्यों कि वह भगबान श्री कृष्ण के वंशज और ब्रज देश का आदि स्वामी माना जाता था।दक्षिण (दौलताबाद ) से लौटकर गोपालदास जी ने मांसलपुर के पास 84 गांव के गौज जादों ठाकुरों को ताबे किया।इन्होंने मांसलपुर में एक छोटा सा महल बनवाया व बाग भी लगवाया और चम्बल नदी पर झिरी में भी एक महल बनबाया तथा करौली से कुछ दूर बहादुरपुर में भी एक दुर्ग भी बनवाया।एक गोपाल मंदिर भी बनबाया जिसमे दौलतायाबाद से लाई हुई मूर्ति स्थापित की गई। ये कुछ समय तक अजमेर में बादशाही किलेदार भी रहे।गोपालदास जी के राजकुमारों में से उल्लेखनीय 2 मुकतराव और तरसेम बहादुर थे।मुक्तराव् से मुक्तावत शाखा निकली जिसमे सरमथुरा झिरी और सवल गढ़ के जादों है।तुरसम बहादुर से बहादुर के जादों शाखा हुई जिनके वंसज बहादुरपुर और विजयपुर वाले है।जय जदुवंश ।।जय श्री कृष्णा ।।
डा0 धीरेन्द्र सिंह जादौन
गांव -लाढोता , सासनी
जिला- हाथरस , उत्तरप्रदेश।