—
ऋषियो के श्राप के कारण साम्ब के पेट से एक मूसल पैदा हुआ।राजा उग्रसेन नेउस लोहमेय मूसल काचूर्ण करा डाला और उसे समुद्र में फिकवा दीया।उससे वहा बहुत से सरकंडे उत्पन्न होगये।मूसल का एक भाले की नोंक के सामान पतला टुकड़ा चूर्ण करने से बचा उसे भी समुन्द्र में फेक दीया।उसे एक मछली निगल गयी।उस को एक मछुआरे ने पकड़ लिया।चीरने पर मछली के पेट से निकले हुयेउस मुस्लखण्ड को ज़रा नामक व्याध ने ले लिया।भगबान मधुसूदन इन सब बातों को यथावत जानते थे तथापि उनहोंने विधाता की इच्छा को अन्यथा करना न चाहा।इसी समय देवताओं ने वायु देव को माधव के पास भेजा।उन्होंने एकांत में प्रणाम करके कहा भगवन मुझे देवताओं ने दूत बना कर आप के लिए एक सन्देश भेजा है वह सुनिए।हे भगवन आप को यदुवंश में अवतार ग्रहण किये125 वर्ष बीत गये।अब हमारा कोई काम बाकी नही जिसके लिएआप की यहा रहने की जरूरत हो।मुनियो के श्राप से आप का कुल भीएक प्रकार से नस्ट हो ही चुका है।यदि आप उचित समझें तो अपने परमधाम में पधारें।हे दूत तुम जो कहते हो वह मैं सब जानता हूँ।मैं पहले से ही वैसा निश्चय कर चुका हूँ।मैंने आप लोगों का सब काम पूरा करके पृथ्वी का भार उतार दिया।परंतु अभी एक अति आवश्यक कार्य शेष है। वह यह है क़ि ये जदुवंशी बल-विक्रम,वीरता -शूरता और धन-संपत्ति से उन्मत हो रहे है।ये सारी पृथ्वी को ग्रश लेने पर तुले हुए है।इन्हें मैंने ठीक वैसे ही रोक रखा है,जैसे समुद्र को उसके टट की भूमि रोके रहती है।यदि मैं इन घमंडी ,महावीर योद्धाओं के इस विशाल यदुवंश को नष्ट किये बिना ही चला आया तो ये सब मर्यादा का उल्लंघन करके सारे लोकों का संहार कर डालेंगे।ये सभी अजेय है , इनको कोई भी देवता युद्ध में परास्त नहीं कर सकता है।इन जादवों का संहार हुए बिना अभी पृथ्वी का भार हल्का नही हुआ है।अतः अब सात रात्रि के भीतर”इनका संहार करके” पृथ्वी का भार उतार कर मैं शीघ्र ही वही कार्य करूँगा।उद्धव जी ने भगबान श्री कृष्ण से कहा प्रभु द्वारिका में अप्सकुन् हो रहे है क्या अब आप इस कुल का नाश करेंगे मुझे क्या आज्ञा है? हे उद्धव तुम मेरी आज्ञा से बदिरकाश्रम क्षेत्र चले जाओ।अब यह यदुवंश पारस्परिक फुट और युद्ध से नष्ट हो जाएगा ।आज के सातवें दिन समुद्र इस पुरी द्वारिका को डुबो देगा।मुझसे भय मानने के कारण समुद्र केवल मेरे भवन को छोड़ देगा।अपने इस भवन में ,मैं भक्तों की हितकामना से सर्वदा निवास करुगा ।भगवान् माधव और बलराम के साथ सभी जादव प्रभास क्षेत्र में आये और वहा पर भोजन तथा मदिरापान किया और एक दूसरे से लड़ने लगे।जब शस्त्र समाप्त हो गए तो पास में उगे सरकंड़ोंसे लड़ने लगे।वे सरकंडे वज्र के सामान प्रतीत होते थे।जब श्री हरि ने उन्हें आपस में लड़ने से रोका तो उन्होंने श्री कृष्ण जी को अपने प्रतिपक्षी का सहायक होकर आये हुए समझा और एक दूसरे को मारने लगे।फिर तो भगवान् कृष्ण भी गुस्से में आकर मुसलरूपी सरकंडों से अपने ही वंशजों को मारने लगे।एक ही क्षण में श्री कृष्ण और उनके सारथी दारुक केअलावा कोई यदुवंशी जीवित नहीं बचा।बलराम जी भी सर्प का रूप धारण करके अपने लोक को चले गये।हे दारुक तुम यह सब व्रतांत हमारे पिता वसुदेव जी और राजा उग्रसेन जी को बताना।यदुवंश समाप्त हो चुका है ।मैं भी योगस्थ होकर अपना शरीर छोड़ूंगा।सभी यदुवंशी द्वारिका छोड़ कर अर्जुन के साथ चले जाय।मेरे जाने के बाद समुद्र इस नागरी को डुबो देगा।तुम अर्जुन से मेरी तरफ से कहना कि”अपने सामर्थ्यानुसार वह मेरे परिवार की रक्षा करें।हमारे पीछे वज्र यदुवंश का राजा होगा।इसके बाद अर्जुन ने वज्रनाभ जी को इंद्रप्रस्थ लेजा कर सभी जदुवंशियो को अत्यंत धन-धान्य संपन्न पंचनंद “पंजाव”देश में वसाया।इसके बाद वज्रनाभ जी को मथुरा का राजा बनाया।जय श्री कृष्ण।जय श्री वज्रनाभ जी।
डा0 धीरेन्द्र सिंह जादौन
गांव- लढोता ,सासनी
जिला हाथरस उत्तरप्रदेश।