मथुरा जनपद के छाता परगना के जादौन राजपूतों के गाँवों का एतिहासिक विवरण ——-
मथुरा जिले के छाता परगना में जादौन राजपूतों के गांव बहुतायत में हैं जिनकी संख्या 52 बोली जाती है जिनमें से कुछ गाँवों का लगभग सन 1875 के ब्रिटिश कालीन दस्तावेजों में विवरण मिलता है, उनका वर्णन इस प्रकार है ——-
1- आजनौक ( Ajhnok) —
अंजन सिला के नाम पर इस गाँव का नाम आजनौक पड़ा। यहां किशोरी कुण्ड नामक एक पवित्र सरोवर है।भादों माह में यहाँ रासलीला होती है। गाँव के तीन लम्बरदार हैं तथा रकवा 1304 एकड़ व देय राजस्व 2000 रुपए है।
2-– अलवाई (Alwai) ––
छाता गोवर्धन मार्ग पर अलवाई गाँव बसा हुआ है, यहाँ राधाबल्लभ का एक सुंदर मंदिर है। गाँव का रकबा 910 एकड़ व राजस्व 1150 रुपए है। गाँव के दो लम्बरदार हैं।
3– चकसौली ( Chaksauli) —
चकसौली बरसाना पहाड़ी के नीचे स्थित है यह बरसाना से एक छोटे से दर्रा से अलग होती है जिसे संकरी खोर कहते हैं। भादों माह के शुक्ल पक्ष की नवमी व त्रयोदशी को यहाँ पर हर साल दो मेले लगते हैं। गाँव का रकवा 1142 एकड़ व राजस्व 1425 रुपये है। गाँव दो थोक में बटा है जिसमें 4 लम्बरदार हैं।
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डरावली गाँव में राधाकृष्ण जी और रामलला के दो बड़े ही मनोहारी मंदिर हैं और एक विशाल सरोवर है।गाँव का रकवा 448 एकड़ व राजस्व 1084 रुपए है। गाँव दो थोक व 6 लम्बरदारों में बटा है।
5— देवपुरा ( Devpura) —
देवपुरा गाँव का रकवा 710 एकड़ है। यहाँ पर गोपाल जी का मंदिर है और ठाकुर मौहकम सिंह द्वारा बनवाई गई एक कचहरी है जो कि वर्तमान जादौन जमींदारों के पूर्वज थे। गाँव का देय राजस्व 1020 है। गाँव बराबर के दो थोक में बटा है जिसके तीन लम्बरदार हैं।
6— गाजीपुर ( Gazipur) —-
गाजीपुर गाँव के दस – दस विस्वा के दो थोक हैं एक थोक के जमींदार ब्राह्मण हैं और दूसरे थोक के जादौन ठाकुर कुल मिलाकर पाँच लम्बरदार हैं। यहाँ प्रेम सरोवर नाम का एक तालाब है जिसे बरसाना के रूपराम कटारा ने पक्का करवाया। किशोरीबल्लभ, ललितामेहन व गोपाल जी के तीन मंदिर हैं,जिसमें से ललितामेहन व गोपालजी के मंदिर का भी निर्माण रूपराम ने करवाया। मंदिर के ठीक सामने एक चारदीवारी युक्त एक सुंदर बगीचा है जिसमें एक छतरी बनी हुई है जो रूपराम ने अपने भाई हेमराज की याद में बनवाई। भादों माह के शुक्ल पक्ष की 12 को यहाँ रासलीला का आयोजन होता है। गाँव का रकवा 634 एकड़ व राजस्व 650 रुपए।
7— हथिया ( Hathia) —-
4466 एकड़ रकवा का जादौन राजपूतों का यह गाँव मेव बाहुल्य है, यह एक बड़ा गाँव है। महादजी सिंधिया ग्वालियर ने रूपनगर के साथ हथिया गाँव को सन् 1792 ई. में कृपा शंकर ज्योतिषी को दिया था जिसे उनके वंशज गोविंद लाल ने सन् 1814 में मथुरा के नगर सेठ व जमींदार लाल बाबू को 21000 रुपए में बेच दिया, और लाल बाबू ने इस गाँव को वृंदावन में अपने कृष्ण चंद्र के मंदिर की व्यवस्था के लिए लगा दिया। सन् 1829 में उनकी मृत्यु के बाद उनके पुत्र श्री नारायण इस गाँव के जमींदार हुए। पहले गौरवा राजपूतों के पास इस गाँव का 14 विस्वा मालिकाना हक रहा और 5 विस्वा जादौन व ब्राह्मणों के पास एवं शेष 1 विस्वा मेव मुसलमानों के पास था। अब इनके पास 5 प्रतिशत माफीदारी रही और शेष जमींदारी लालबाबू के वंशजों के हाथ में रही।गाँव में एक बड़ा आम का बाग है और एक नई मस्जिद।
8 — कम्ही ( Kamhi) —–
3979 एकड़ का बड़ा गाँव है जिसका देय राजस्व 5383 रुपए है। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में यहाँ के जादौन जमींदार गौरवा राजपूतों से अपने भाई बन्धुओं के साथ लड़ते हुए मारे गये। यहाँ के निवासियों ने अपने खर्चे पर एक बड़ा स्कूल बनवाया। कम्ही गाँव चौरासी कोसी यात्रा का एक पड़ाव है। भादों शुक्ल 6 को यहाँ रासलीला व चैत्र कृष्ण 5 को यहाँ फूलडोल का मेला लगता है। यहाँ चार छोटे मंदिर व तीन पवित्र सरोवर हैं जिन्हें हरि कुण्ड, बलदेव कुण्ड व पीरीपोखर कहते हैं। गाँव के 14 लम्बरदार हैं।
9— करहला ( Karhala) —–
करहला गाँव जादौन जमींदारों ने सन् 1811 में लाला बाबू को 300 रुपए में बेच दिया जिसका कि देय राजस्व 1900 रुपए था। यहाँ कृष्ण कुण्ड सरोवर के चारों तरफ बहुत बड़े क्षेत्र में कदम्बखण्डी फैली हुई है। करहला में तीन मंदिर व एक हलकाबंदी स्कूल है तथा भादों शुक्ल 7 को यहाँ रास होता है।
10— लाधौली ( Ladhauli) —–
410 एकड़ रकवा का गाँव जिसका राजस्व 650 रुपए है। कदम्ब की झाडियों से घिरा एक सरोवर है जिसे ललिता कुण्ड कहते हैं। गाँव के तीन लम्बरदार हैं।
11– मण्डोई ( Mandoi) —-
452 एकड़ का मण्डोई गाँव जिसका देय राजस्व 558 रुपए है। इस गाँव के तीन लम्बरदार हैं। गांव का कुछ हिस्सा बूंचे लाल ब्राह्मण को बेच दिया। गाँव में आचार्य कुण्ड नाम का एक तालाब व जसी रासधारी द्वारा लगाया गया एक बाग।
12— नरी ( Nari)—-
नरी गाँव सन् 1830 तक बेगम साहिबा की निजी जागीर था। सन् 1830 में इस गाँव का पहली बार लगान बना जो 2650 रुपए था। गाँव चार थोक में बटा हुआ था जिसमें प्रत्येक की दो पट्टी थीं और उनके 8 लम्बरदार थे।गाँव में एक हलकाबंदी स्कूल, दो छोटे मंदिर और तीन तालाब हैं जिन्हें बिसोखर, सूर्य कुण्ड और लाल मेव के नाम से जाना जाता है। लाल मेव तालाब एक मेवाती ने खोदा था इसलिए उसके नाम से जाना जाता है।
13 — पाली ( Pali) —-
पाली गाँव, छाता गोवर्धन मार्ग पर स्थित है। महन्त पीताम्बर लाल और उनके चेले सालिगराम को सन् 1839 तक इस गाँव की राजस्व माफी मिली हुई थी लेकिन सन् 1849 में ही महन्त बालमुकुंद के साथ 950 रुपए राजस्व निर्धारित हुआ जो अब देय था। कुछ समय बाद महन्त ने इस गाँव को जादौन राजपूतों व अन्य को बेच दिया। यहाँ मुरलीमनोहर का मंदिर है तथा करील व छैंकुर की बहुत बड़ी बोझिया ( झाड़ी) है। गाँव का रकवा 690 एकड़ है।
14 — पिसावा ( Pissayo) —-
छाता परगना का एक महत्वपूर्ण गाँव, यहाँ संभवतः पूरे जिले सबसे घने व सुरम्य जंगल देखने को मिलते हैं। यह गाँव काफी हद तक जंगलों एवं खुले वन मार्गों की श्रृंखला का केन्द्र है। एक बहुत ही सुंदर कदम्ब के वृक्षों की पट्टी पापरी पसैण्डू, ढाक व सिहोरा के वृक्षों के साथ फैली हुई है जिनमें वानर सेना के झुंड के झुंड रहते हैं। गाँव के पूर्वी छोर पर करील, रेंजा व पिलुआ की झाड़ी है लेकिन पश्चिमी छोर सुंदर बागों से घिरा हुआ है जिससे गाँव में सुगंधि महकती रहती है। यहाँ पर किशोरी कुण्ड सरोवर व दो मंदिर हैं जिनका परिक्रमा के समय तीर्थयात्री दर्शन करते हैं। भादों माह के शुक्ल पक्ष की नवमी को यहाँ उत्सव होता है। गाँव का देय राजस्व 1950 रुपए है तथा तीन थोकों में विभाजित है जिसके आठ लम्बरदार हैं।
15 — रहेरा (Rahera) —–
रहेरा गाँव आगरा नहर के पुल के पास स्थित है। गाँव में छोटी सी झाड़ी है, भादों शुक्ल 8 को यहाँ रासलीला होती है। गाँव का रकवा 2000 एकड़ व राजस्व 2739 रुपए है।यहां 6 थोक हैं जिनमें 9 लम्बरदार हैं।
16— रनवारी ( Ranwari) —-
रनवारी छाता गोवर्धन मार्ग पर पर स्थित जादौन घार का एक गाँव है जिसका रकवा 1536 एकड़ व राजस्व 2350 रुपए है। मालिकाना थोक दो हैं जिनमें पाँच लम्बरदार हैं।
17– रूपनगर ( Rupnagar) —–
रूपनगर गाँव बरसाना के रूपराम कटारा ने बसाया था इसलिए उनके नाम इस गाँव का नाम रूपनगर पड़ा,उन्होंने ही यहाँ एक सुंदर तालाब का निर्माण करवाया था। यह गाँव हथिया गाँव के साथ ही महादजी सिंधिया से कृपा शंकर जोशी को माफी में मिला हुआ था। इस समय अमर लाल इस गांव के जमींदार भी हैं व माफीदार भी हैं।
18– संकेत ( Sanket) —–
बरसाना व नंदगांव के बीच में बसा हुआ है जो सन् 1812 में लाला बाबू मथुरा को 301 रुपए में बेच दिया था। बाद में इसे जादौन राजपूतों ने खरीद लिया और इस समय जादौन राजपूत जमींदार हैं। यहाँ राधारमण जी का मंदिर है जिसे बरसाना के रूपराम कटारा ने बनवाया था, इसके अलावा दो अन्य मंदिर और भी हैं जो राजा बर्धमान व महाराजा ग्वालियर ने बनवाये। यहाँ कृष्ण कुण्ड व विमला कुण्ड नाम के दो पवित्र सरोवर हैं।
19– साँखी ( Sankhi)—–
छाता गोवर्धन मार्ग पर स्थित साँखी गाँव का रकवा 1607 एकड़ और राजस्व 1680 रुपए है। पूरे भादों माह यहाँ रास का आयोजन होता है।
20– सेमरी ( Semari) —-
आगरा दिल्ली रोड पर बसा सैमरी गाँव सन्1836 तक बेगम साहिबा की जागीर का गाँव रहा है,इसके बाद इस गाँव का राजस्व निर्धारित हुआ जोकि 2930 रुपए है। गाँव में 11 लम्बरदार हैं। रिकार्ड लिखने के लगभग 100 वर्ष पूर्व इस गाँव में से 2 मजरे ( नगला) बने जिन्हें नगला ब्रजा व नगला देवी सिंह के नाम से जाना जाता है और उनके कुछ समय बाद तीसरा मजरा बना जिसे दद्दी गढ़ी के नाम से जानते हैं। 1857 में यहाँ जादौन राजपूतों एवं गौरवा राजपूतों में भयंकर लड़ाई हुई। इस गांव में कई छोटे छोटे आधुनिक मंदिर हैं तथा एक अत्यंत प्राचीन देवी का मंदिर है जो स्थानीय स्तर पर बहुत ही प्रतिष्ठित एवं प्रसिद्ध है। वर्ष में एक पखवाड़े तक चलने वाले दो वार्षिक मेले लगते हैं। एक वैशाख शुक्ल 1 से शुरू होता है और दूसरा मेला जो ज्यादा बड़ा और भव्य लगता है वह चैत्र शुक्ल 1 से लगता है। सेमरी गाँव में ढाक के पेड़ों का एक जंगल है।
21– ऊबा ( Uba) —–
यह गाँव ग्वालियर नरेशमहादजी सिंधिया द्वारा शेषमल मिश्रा को माफी में दिया गया था सन 1836 में यह गाँव इनके वंशजों को आगे के लिए confirm कर दिया गया और जिसका राजस्व सरकार को 130 रुपए मिलता था और माफीदार को 875 रुपए मिलते थे। गौतम ब्राह्मण मूलतः गांव के जमींदार थे जिनके पास अब थोड़ा ही हिस्सा है जबकि शेष गांव के जादौन राजपूत जमींदार हैं। गौतमों के पास 8.5 विस्वा और शेष किशोरी लाल जादौन के पास।नदी किनारे पर रूपराम बरसाना वालों द्वारा बनवाया गया मंदिर है जहाँ पर वार्षिक मेलों का चैत्र कृष्ण 5 को फूलडोल व सावन शुक्ल 5 को हिंडोला का आयोजन होता है। यहाँ मोहना बाग नामक ए आम का बाग है जो उसे लगाने वाले मोहन ब्राह्मण के नाम पर बोला जाता है।
22— उमराया ( Umraia) —–
उमराया गाँव महादजी सिंधिया ने बालकृष्ण शास्त्री को जागीर में दिया था जो सन्1862 में ब्रिटिश सरकार द्वारा उनके वंशजों को confirm कर दिया गया। वैसे मूल रूप से गूजर गाँव के जमींदार थे,जिन्होंने 12.5 विस्वा हिस्सा कायस्थों को बेच दिया लेकिन बाद में गाँव के नये व पुराने जमींदार दोनों आर्थिक परेशानियों से घिर गए। उन्होंने डीग के एक जादौन ठाकुर परसा को बेच दिया, बाद में गूजरों ने कुछ हिस्सा वापस ले लिया और इस गाँव का कुछ हिस्सा ऊंदी के रामबल जाट को दे दिया। अब इस गाँव में तीन जातियों के अलग अलग थोक हैं, इसी गाँव का एक मजरा ऊमरपुर रनवारी के जमींदार के अधिकार में आगया जिसके पास इसकी आमदनी का 5 प्रतिशत माफी में था और उमराया के जमींदारों के पास 7 प्रतिशत माफी में था। यहाँ बिहारी जी का अत्यंत प्राचीन मंदिर व किशोरी कुण्ड नाम का एक पवित्र सरोवर है और छैंकुर की बहुत बड़ी झाड़ी
लेखक -राव सागर पाल सिंह
ठिकाना -अमरगढ़
जिला -फिरोजाबाद